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श्रीमती दुर्गा भाभी का 2007-2008 जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया गया है। जिन्होंने एक सक्रिय क्रान्तिकारी का जीवन बिताया। इनका जन्म 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद में हुआ था। वे एक क्रांतिकारी देशभक्त शहीद श्री भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं, जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देश की स्वतंत्र्ता के लिए लडते हुए किया तथा देश के लिए अपने पारिवारिक हितों का बलिदान कर दिया। दुर्गा भाभी श्री भगतसिंह की सहयोगी रहीं। पराधीन भारत को स्वाधीन बनाने में उनके तथा उनके परिवार के अप्रतिम बलिदान की तुलना नहीं की जा सकती। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों ने स्वतंत्र्ता प्राप्त करने में अभूतपूर्व योगदान दिया था। स्वतंत्र्ता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली दुर्गा भाभी के हृदय में राजनीति से हटने में जरा भी देर नहीं लगी। उन्होंने सोचा भी नहीं कि स्वतंत्र्ता पाने के बाद बहुत लाभ उठा सकती हैं तथा अपने परिवार के लिए सुख-समृद्धि ला सकती हैं। परन्तु 1947 के पश्चात् दुर्गा भाभी का या उनके सुपुत्र् श्री शचीन्द्रनाथ बोहरा का नाम किसी ने, कहीं भी, राजनीतिक गतिविधियों में या लाभ के पद पर देखा हो या सरकार ने उनको कोई सुविधा दी ऐसा ज्ञात नहीं होता।
श्रीमती दुर्गा भाभी का क्रांतिकारी जीवन उनका विवाह श्री भगवतीचरण वोहरा के साथ होने के पश्चात् ही प्रारम्भ हुआ। क्रांतिकारियों में तथा स्वतंत्र्ता संग्राम सैनानियों म महिला होने के बावजूद सबसे आगे रहने वाली श्रीमती दुर्गा देवी वोहरा को देशभक्त दुर्गा भाभी के नाम से जानते हैं। श्रीमती दुर्गा देवी ने 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद के सेवानिवृत्त न्यायाधिकारी माननीय पण्डित बांके बिहारी नागर के घर में जन्म लेकर उनके परिवार को *तार्थ कर दिया। पिता ने उनका नाम दुर्गा रखा जो वास्तव में अंग्रेजों के लिए माँ दुर्गा की अवतार निकलीं तथा सम्पूर्ण भारत के लिए श्रद्धा एवं सम्मान की अधिकारिणी बन गईं। इनकी माता का स्वर्गवास इनके बचपन में ही हो गया तथा पिताश्री ने इनके लालन पालन का उत्तरदायित्व इनकी चाची के ऊपर डालकर संन्यास ले लिया। इनकी शिक्षा पाँचवीं कक्षा तक हुई तथा 1918 में शीघ्र ही इनका विवाह श्री शिवचरण वोहरा के सुपुत्र् श्री भगवती चरण वोहरा के साथ हो गया और वे श्रीमती दुर्गादेवी वोहरा हो गईं। श्री भगवती चरण वोहरा भगतसिंह के सहयोगी थे जिन्होंने भारत को स्वतंत्र्ता दिलाने का स्वप्न सँजोकर आजादी की लडाई लडने की प्रतिज्ञा करके पढाई लिखाई छोड दी। ससुराल में अंग्रेज विरोधी वातावरण था, उसमें श्रीमती दुर्गा पूरी की पूरी रँग गई। पूरा घर खद्दर का प्रयोग करता था तथा वे अपने मित्रें को भी खद्दर के लिए प्रेरित करते थे। गाँधी जी द्वारा प्रेरित असहयोग आन्दोलन सफलता की ओर था तभी चौरी-चौरा काण्ड हो गया और असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया गया जो देशहित में नहीं था इसलिए क्रान्तिकारियों को ठीक नहीं लगा और इन नौजवान क्रान्तिकारियों ने अपना अलग से संगठन बनाने का प्रण किया जिसमें दुर्गा भाभी का अभूतपूर्व योगदान था। इसके साथ-साथ दुर्गा भाभी ने प्रभाकर की परीक्षा भी पास कर ली। 1925 में दुर्गा भाभी ने पुत्र् को जन्म दिया तथा माँ ने उसका नाम शचीन्द्रनाथ वोहरा रखा जो जाने माने क्रान्तिकारी श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल के नाम पर था।
असहयोग आन्दोलन की असफलता के कारण क्रान्तिकारियों ने मिलकर 1928 में �हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसियेशन� नाम से संगठन प्रारम्भ किया और क्रान्तिकारी गतिविधियों की योजना बनाने का उत्तरदायित्व इस संगठन को दिया गया। पूजनीय सर्वश्री भगवतीचरण बोहरा, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, राजेन्द्रसिंह लाहिणी, अशफाक उल्ला खान, दुर्गा भाभी आदि नामी क्रान्तिकारी इसके सक्रिय सदस्य थे। क्रान्तिकारी गतिविधियों के बढने पर दुर्गा भाभी के ऊपर बच्चे के लालन पालन के बोझ के अतिरिक्त क्रान्तिकारी गतिविधियों का शान्तिपूर्ण संचालन भी था।
एक विशेष बात यहाँ कहना चाहूँगा कि क्रान्तिकारियों के द्वारा किसी भी समस्या का हल नहीं होने पर दुर्गा भाभी का निर्णय सर्वोपरि समझा जाता था। उनके विचार किसी क्रान्तिकारी गतिविधि को सफल बनाने में सक्षम थे। महिला होने के नाते अंग्रेजों को इन पर बिल्कुल संदेह नहीं था। इसलिए सूचना देने, पेम्फलेट बाँटने, गोला-बारूद भेजने आदि कार्य तथा समस्त क्रान्तिकारियों के मध्य सम्फ का काम आसानी से किया करती थीं। साइमन कमीशन के विरोध के चलते प्रदर्शन के समय पंजाब-केशरी लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज करके उनको घायल कर दिया जिससे उनका स्वर्गवास हो गया। युवा क्रान्तिकारियों ने इस घटना को भारत के अपमान के रूप में लिया। परिणामस्वरूप इस हत्या के उत्तरदायी पुलिस अधिकारी मिस्टर साण्डर्स का वध राजगुरु, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आदि ने लाहौर में कर दिया। इन लोगों को लाहौर से निकालना आवश्यक था। दुर्गा भाभी ने योजना बनाई, श्री भगतसिंह अंग्रेज अधिकारी बने, राजगुरु नौकर और दुर्गा भाभी उनकी पत्नी तथा बडे नाटकीय ढंग से अपने बच्चे को लेकर लाहौर से बाहर निकल गईं।
दुर्गा भाभी के नेतृत्व में राष्ट्रीय महापुरुष श्री लाला लाजपत राय की मौत का प्रतिशोध लेने के लिए एक बैठक बुलाई गई जिसकी अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने ही की थी। यह बडे गर्व की बात है तथा लाला लाजपत राय की हत्या के उत्तरदायी पुलिस अधिकारी मिस्टर स्कॉट का वध करने का पुनीत कार्य करने की उनकी इच्छा स्वयं थी, परन्तु अनुशासन में बँधी वे यह कार्य न कर सकीं।
दुर्गा भाभी के पति श्री भगवतीचरण वोहरा का बम परीक्षण में 1930 में देहान्त हो गया। इससे पूर्व की घटना में श्री भगतसिंह आदि का नाम �साण्डर्स काण्ड� में जोडकर उनको अंग्रेजों ने फाँसी की सजा सुना दी। पूरा का पूरा संगठन हिल गया परन्तु दुर्गा भाभी ने इनकी शहादत को बेकार नहीं जाने दिया और देश के लिए वे और भी शक्तिशाली होकर उभरीं जबकि उनके एकमात्र् पुत्र् के प्रति भी उनका उत्तरदायित्व था जो अभी बहुत छोटा था। पुलिस की नजरों में किरकिरी बनी दुर्गा भाभी के नाम से वारंट जारी कर दिया गया। इसी दौरान मिस्टर मेल्कम हेली का वध करने की योजना दुर्गा भाभी के नेतृत्व में बनाई गई। मेल्कम हेली को तो नहीं मार पाईं, परन्तु दूसरे हवलदार टेलर को घायल कर दिया। दुर्गा भाभी के साथ करीब 15 लोगों के नाम वारण्ट जारी कर दिया गया जिसमें शायद 10/12 पकडे गये तथा अपने दो साथियों के साथ दुर्गा भाभी अचानक भूमिगत हो गईं और नहीं पकडी जा सकीं। अंग्रेजों ने चाल चली और दुर्गा भाभी को पकडने की राजनीति के अन्तर्गत न्यायालय ने पकडे गये सब साथियों को छोड दिया।
श्रीमती दुर्गा भाभी आदि के वारण्ट निष्क्रिय कर दिये गये। परिणामतः वे पहले से अधिक शक्तिशाली होकर क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गईं। अंग्रेज अपनी चाल में सफल हुए और पहली बार 1931 में दुर्गा भाभी गिरफ्तार हो गईं। परन्तु उनके खिलाफ कोई मामला न मिलने पर छोड दिया गया। उनकी क्रान्तिकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए संदेह के आधार पर 1932 में तीन साल तक लाहौर न छोडने के आदेश देकर नजरबन्द कर दिया गया। नजरबन्दी से छूटने पर गाजियाबाद के प्यारेलाल गर्ल्स स्कूल में अध्यापन का कार्य किया। इस समय तक उनका पुत्र् किशोरावस्था में था, परन्तु पूरी तरह से अपनी माँ जैसा परिपक्व हो गया था। 1937 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली तथा प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा चुनी गईं। 1939 में मध्यप्रदेश कांग्रेस अधिवेशन में जनपद के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया, परन्तु राजनीति की उठा-पटक से तंग आकर राजनीति छोड दी। भारत स्वतंत्र् होने वाला था, उनके मन में तनिक भी ध्यान नहीं आया कि स्वतंत्र्ता प्राप्त करने के बाद वे बहुत लाभ उठा सकती हैं जिससे उनका परिवार सुख का जीवन व्यतीत कर सकता है। उन्होंने पलटकर भी राजनीति की ओर नहीं देखा, न ही भारत सरकार ने उनके बलिदानों को याद किया। अध्यापन के क्षेत्र् में आगे बढने के लिए मांटेसरी शिक्षा पद्धति की ट्रेनिंग, अडयार मद्रास में प्राप्त की तथा 1940 में प्रथम मांटेसरी स्कूल की स्थापना की तथा शिक्षा के क्षेत्र् में काम करना शुरू कर दिया।
जीवन के अन्तिम समय में उन्होंने अपने निवास को �शहीद स्मारक शोध केन्द्र� बना दिया, जहाँ पर स्वतंत्र्ता सैनानियों के चित्र्, जीवनी का विवरण तथा साहित्य उपलब्ध होता रहे। समाजसेविका, शिक्षाविद् के रूप में अपना जीवनयापन करते हुए 14 अक्टूबर 1999 को उनका स्वर्गवास हो गया। ऐसी माँ दुर्गादेवी की, दुर्गा भाभी की चरण वन्दना, और शत-शत नमन।

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